आदिवासी तथा लोक मिथकों पर केंद्रित मुक्ताकाश वीथी


संसार भर में ऐसी कोई जाती या जनजाति नहीं है जिसके अपने मिथक न हों । हर समुदाय ने जीवन से जुड़े ऐसे प्रश्न जिनका कोई सीधा साधा जबाव नहीं है , जैसे हम कौन हैं ? कहाँ से आए ? क्यों आए ?हमारे या जीवन मात्र के होने का क्या अर्थ है ? आदि का जबाव अलग-अलग तरह से मिथकों की रचना करके दिया है । मिथक का जन्म मनुष्य की बुद्धि तथा भाषा जितना ही प्राचीन है । प्राचीन होने के साथ साथ मिथक प्रत्येक संस्कृति में आए उतार-चढ़ाव तथा उसकी जीवन दृष्टि की अनुगूँज को अपने में बीज रूप में संजोए रहता है । इसलिए किसी भी संक्रिटी को समझने के लिए उसके मिथकों को जानजा व समझना आवश्यक है ।



झीलों का शहर कहे जाने वाले भोपाल में मिथक वीथी नामक मुक्ताकाश प्रदर्शनी देश के अनेक आदिवासी तथा लोक मिथकों पर आधारित चित्र, मूर्तियों का एक वृहद् संग्रह है । ये कथाए क्योंकि मौखिक परम्पराओं का अंग हैं इसलिए इनके बारे हम सब को बहुत कम जानकारी है । ख़ास बात यह कि यहाँ प्रदर्शित कृतियाँ आदिवासी तथा लोक कलाकारों द्वारा उनके अपने मिथकों पर ख़ुद उनके हाथों बनाई गईं हैं । विद्वानों द्वारा इन मिथकों को विषय-वस्तु के आधार पर सृजन, पल्लवन तथा संहार की कोटि में वर्गीकृति किया जा सकता है । इस प्रदर्शनी का फलक इतना विस्तृत है कि अभी इसमें अनेक मिथकों के जुड़ने की सम्भावना खुली नज़र आती है । हालाँकि अभी तक इस प्रदर्शनी में लगभग साथ कलारों की भागीदारी से अड़तालीस प्रादर्श संकुल तैयार कर लगाए हुए हैं । यह कृतियाँ मिट्टी, पत्थर, पीतल, टेराकोटा तथा रंगों के इस्तेमाल से बनाई हुईं हैं । आदिवासी तथा लोक मिथकों पर केंद्रित यह अपने तरह की देश में एकमात्र प्रदर्शनी कही जा सकती है जो भारतीय संस्कृति में निहित बहुलता, वैविध्य, अनेकता में एकता को प्रदर्शित और चरितार्थ करती है । इसके साथ ही यह देश के आदिवासी समाजों की समृद्ध मिथक परम्परा, संचलन तथा लोक अंतरदृष्टियों को देखने, समझने और उसके साथ संवाद क़ायम करने का अवसर प्रदान करती है ।